श्री मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की कथा हिंदी में
MANDIR | SOMNATH JYOTRILING |
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सम्बद्धता | हिंदू धर्म |
देवता | शिव/ मल्लिकार्जुन |
शैली | हिन्दू |
निर्माता | स्वयंभू |
स्थापित | अति प्राचीन |
Phone | 083339 01351 |
Address | Srisailam, Andhra Pradesh 528101 |
श्री मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग
आंध्र प्रदेश के कुर्नल जिले के श्री शैल मल्लिकार्जुन का क्षेत्र एक पवित्र स्थान है जिसकी तलहटी में कृष्ण नदी के पताल गंगा के रूप लिया है। लाखों भक्तजनों यहाँ पवित्र स्थान से शुद्ध होकर ज्योतिर्लिंग दर्शन के लिए जाते हैं
प्राचीन काल में इस कदली बिल्व वन प्रदेश भक्ति में भगवान शंकर आते थे । इसी स्थान पर उन्होंने दिव्य ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थाई निवास किया यह स्थान कैलाश निवास भी कहलाता है।
पुराणों में इस ज्योतिर्लिंग की कथा इस प्रकार बताई गई है
कुमार कार्तिकेय पृथ्वी की परिक्रमा कर के अपने माता पिता के पास कैलाश पर लौटे तो नारदजी जी से गणेश जी के विवाह का वृंतात (बात) सुनकर क्रोधीत हो गए अब माता-पिता के मना करने पर भी उन्होंने शिवपार्वती को प्रणाम कर क्रोच पर्वत पर चले गए । पार्वती जी के दुखित होने पर तथा समझाने पर भी धैर्य न धारण करने पर शंकर जी ने देवर्षियों को कुमार के पास उसको समझाने के लिए भेजा परंतु वह निराश ही लौट आए। इस पर पुत्र वियोग से व्याकुल पार्वती जी के अनुरोध पार्वती जी के संग शिवजी स्वयं वहा गए परंतु वह अपने माता-पिता का आगमन को सुनकर क्रोच पर्वत छोड़कर तीन योजन और दूर चले गए । परंतु यहां पुत्र के ना मिलने पर व्यातसल्य से वयाकुल शिव पार्वती ने उसकी खोज मैं अन्य पर्वतों पर जाने से पहले यहां अपनी ज्योति स्थापित कर दी। तभी से मल्लिका अर्जुन क्षेत्र के नाम के कारण यह ज्योर्तिलिंग मलिकार्जुन कहलाया अमावस्या के दिन शिवजी और पूर्णिमा के दिन पार्वती जी आज भी यहां आते रहते हैं इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन मनन से धन-धान्य की वृद्धि के साथ प्रतिष्ठित ,आरोग्य और अन्य मनोरथो की प्राप्ति होती है।
स्टोरी नो २
चंद्रावती नाम की एक राजकन्या वन निवासी बनकर इस कदली वन में तप कर रही थी। एक दिन उसे ने एक चमत्कार दिखा एक--कपिला गाय बिल्व वृक्ष के नीचे खड़ी होकर अपने चारों स्तनो से दूध की धाराएं जमीन पर गिरा रही है जमीन पर गिरा रही है । गाय का यह नित्यकर्म था । चंद्रावती ने उस स्थान पर खुदा तो आश्चर्यचकित हुई । वहां एक स्वयंभू शिवलिंग दिखाई दिया
वहां सूर्य जैसा प्रकाशमय था । भगवान शिव शंकर के उस दिव्य ज्योतिर्लिंग की चंद्रावती ने आराधना की उसने वहां एक भव्य शिवालय का निर्माण करवाया। भगवान शंकर चंद्रावती पर प्रसन्न हुए। वायु यान में बैठकर वह कैलाश पहुंची। शिव जी के दर्शन कर मोक्ष प्राप्त किया । मंदिर की एक शिल्प पट्टी पर चंद्रावती की कथा खुदी हुई है ।
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