कालो के काल की क्या है कथा ।श्री महाकालेश्वर महाकाल ज्योतिर्लिंग की कथा हिंदी में । जानें श्री महाकालेश्वर मंदिर के पीछे की पौराणिक कथा

श्री महाकालेश्वर  महाकाल ज्योतिर्लिंग की कथा हिंदी में


सम्बद्धता हिंदू धर्म
देवताशिव/ शंकर/ महाकालेश्वर
अवस्थितिउज्जैन, मध्य प्रदेश, भारत
प्रकारहिन्दू वास्तुकला
निर्मातास्वयंभू; जीर्णोद्धारक उज्जैन शासक/मराठा+राजा भोज
स्थापितअति प्राचीन
Phone0734 255 0563
AddressJaisinghpura, Ujjain, Madhya Pradesh 456006




महाकालेश्वर  महाकाल ज्योतिर्लिंग



श्री महाकालेश्वर  महाकाल ज्योतिर्लिंग की कथा हिंदी में । Mahakaleshwar Jyotirlinga History and Story in Hindi ।  जानें श्री महाकालेश्वर  मंदिर के  पीछे की पौराणिक कथा


मध्यप्रदेश में शिप्रा नदी के किनारे उज्जैन नगर में बसा हुआ है जिसकी इंद्रपुरी अमरावती या अवंतिका भी कहते हैं। यही  शिवजी भगवान का महाकालेश्वर मंदिर है। महाकालेश्वर की महिमा अवर्णनीय है 

           अवंतीवासी एक ब्राह्मण के शिवोपासक के 4 पुत्र थे। ब्रह्मा से वर प्राप्त दुष्ट दैत्यराज्य दूषण ने अवंती में आकर वहां के निवासी वेदज्ञ ब्राह्मणों को बहुत उत्पीड़ित किया। परंतु शिवजी के ध्यान में लीन ब्राह्मण तनिक भी डरे नहीं। दैत्यराज्य ने अपने चार अनुचर दैत्यो को नगरी को घेरकर वैदिक धर्म अनुष्ठान न होने का आदेश दिया।दैत्यो के उत्पाद से पीड़ित प्रजा ब्राह्मणों के पास आई। ब्राह्मण प्रजाजनों को  धीरज बंधा कर शिवजी की पूजा में लीन हो गए। इसी समय  ज्योही दूषण मूर्ति के स्थान पर एक भयानक गर्जना के संग धरती फटी और वहां पर गड्ढा हो गया जिसमे से शिवजी एक विराट रूप धारी महाकाल के रूप में प्रकट हुए।उन्होंने उस दुष्ट को ब्राह्मणों के निकट न आने को कहा परंतु उस दुस्ट दैत्य ने शिवजी की आज्ञा ना मानी। फलतः शिवजी ने अपनी एक ही हुंकार से उस दैत्य को भस्म कर दिया। शिवजी को इस रूप में प्रकट हुआ देख ब्रह्मा, विष्णु तथा इंद्र आदि देवों ने भी भगवान शिव शंकर की स्तुति वंदना की थी।



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स्टोरी नो. 2 

उज्जैनी नरेश चंद्रसेन शास्त्रज्ञ होने के संग-संग वे शिव भक्त भी थे। इसके मित्र मणिभद्र माहेश्वरीजी के गण ने उसे एक सुंदर चिंतामणि प्रदान की। जिसे चंद्रसेन कंठ में धारण करते तो इतने अधिक तेजस्वी दिखेते कि देवताओं को भी ईश होने लगती। कुछ राजाओं की मांगने पर मणि देने से इनकार करने पर उन्होंने चंद्रसेन पर चढ़ाई कर दी । अपने को घिरा देख चंद्रसेन महाकाल की शरण में आ गए। भगवान शिव ने प्रसन्न होकर उसकी रक्षा का उपाय किया। संयोगवश एक विधवा ब्राह्मणी अपने बालक को गोद में लिए हुए महाकालेश्वर के मंदिर में पहुंची तो अबोध बालक ने वहां राजा को शिव पूजन करते देखा तो। उस गोपीपुत्र के मन में भी भक्ति भाव उत्पन्न हो गया । उसने एक रमणीय पत्थर लाकर अपने सूने घर में स्थापित किया और उसे शिवरूप मान उसकी पूजा करने लगा। भजन में लीन बालक को भोजन की सुध ही ना रही। अतः उसकी माता उसे बुलाने गई परंतु माता के बार-बार बोलने पर भी बालक ध्यान मगन शांत बैठा रहा। इस पर उसकी अनजान माता ने उस बालक द्वारा स्थापित शिवलिंग को उससे दूर हटा कर उसकी पूजा नष्ट कर दी। माता के इस कृत्य पर दुःखी होकर वह शिवजी का स्मरण करने लगा। शिवजी की कृपा होते देर ना लगी। उक्त बालक दवरा पूजित पाषाण उतनजड़ित ज्योतिर्लिंगके रूप मे अविभृत हो गया। शिव शंकर की स्तुति वदना के उपरांत जब वह बालक घर गया तो उसने देखा कि उसकी कुटिया का स्थान पर सुविशाल भवन ने ले लिया है। इस प्रकार शिवजी की कृपा से वह बालक विपुल धन-धन्य से समृद्ध होकर जीवन बिताने लगा।


     इधर राजा चंद्रसेन के विरोधी राजाओं ने जब नगर का अभियान किया तो वे  आपस मे ही एक दूसरे से कहने लगे कि राजा चंद्रसेन तो शिव भक्त है। और उज्जैन, महाकालेश्वर की नगरी है। जिसे जितना असंभव है। यह विचार कर उन राजाओं ने राजा चंद्रसेन से मित्रता कर ली और सभी ने मिलकर महाकालेश्वर की पूजा की।


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