श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा हिंदी में
सम्बद्धता | हिंदू धर्म |
देवता | ॐमकालेश्वर |
अवस्थिति | मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में |
प्रकार | हिन्दू वास्तुकला |
Address | Omkareshwar, Madhya Pradesh 450554 |
स्थापित | अति प्राचीन |
श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग
यह ज्योतिर्लिंग मध्यप्रदेश में पवित्र नर्मदा नदी के तट पर अवस्थित है। नर्मदा के तट के समीप उसकी धारा में से एक विशाल नदी पर भगवान शिव शंकर के 12 ज्योतिर्लिंग में से चौथे शंकर के 12 ज्योतिर्लिंग ओमकालेश्वर के नाम से प्रसिद्ध है। वहां के नदी को और धारा ॐ जैसा आकार प्राप्त हुआ है । जो प्राकृतिक रूप से सजा हुआ है । नर्मदा की परिक्रमा करने वाले यात्री इस ओंकार की परिक्रमा करने में अपने आप को कृतज्ञ मानते हैं । तथा ज्योतिर्लिंग के दर्शन से पावन हो जाते हैं । यह ओंकार नदी का परिसर और नर्मदा तट का सौंदर्य न्यानभिराम है । प्रकृति की छटा देखते ही बनती है । नर्मदा के तट की मजबूत हरी चट्टानों की सीढ़ीनुमा ढलान पर बसे घर, मंदिर, धारा में स्थित कोटि तीर्थ, चक्र तीर्थ जैसी बड़ी खाईया है । इन खाईयो में रहने वाली महाकया मछलियां और भयानक मगरमच्छ दिखाई देते हैं । ओमकार नदी पर लताओं से लिपटे घने वृक्ष नजर आते है । वृक्षों पर बंदरों की भीड़ रहती है । पक्षी चाहकते हैं । मंदिरों के शिखर चमकते रहते हैं वातावरण में सदा गूजते रहने वाला 'ॐ नमः शिवाय' का जयघोष निरंतर सुनते हैं । ऐसे स्थान पर भगवान शंकर ओमकारेश्वर और ओमरेश्वर के नाम से ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए ।
जिसकी कथा इस प्रकार है ।
प्राचीन काल में जब दानवों द्वारा देव पराजित हुए थे तब दानवों ने त्रिलोक में उधम मचा दिया था । इंद्र आदि देव चिंतित हो महादेव जी की स्तुति करने लगे । इस पर देवगणों को फिर से बल प्राप्त हो इसके लिए महादेव जी ने दिव्य ज्योतिमाय ओमकर रूप धारण किया । पाताल से निकल कर शिव महादेव भगवान नर्मदा तट पर लिंग रूप में प्रकट हुए । देव गणों द्वारा लिंग की प्रतिस्थापना से देवों को फिर से बल प्राप्त हुआ । उन्होंने दानवों का नाश कर स्वर्ग का अपना खोया हुआ साम्राज्य फिर से प्राप्त किया । ओमकार ओमरेश्वर ज्योतिर्लिंग के स्थान पर ब्रह्मा और विष्णु भगवान ने भी निवास किया । अतः नर्मदा तट पर ब्रह्मपुरी, विष्णुपुरी तथा रूद्रपुरी का त्रिपुरी क्षेत्र बन गया । रुद्रपुरी में अमरेश्वर ज्योतिर्लिंग है ।
Story नो. २
इसके उपरांत पुराण काल में देवें इंद्र की कृपा से युवानाश्वपुत्र मांधाता यहां राज करता था ।
उसने भगवान शिव महादेव की परम सेवा की जिससे भगवान शिव प्रसन्न हुए और मांधाता को सुखपूर्वक जीने की सुबुद्धि दी । फलस्वरूप मांधाता राजा ने इस पवित्र स्थान पर अपनी राजधानी बनाई । अतः तीर्थ स्थान को ओमकार मांधाता के नाम से जाना जाता है । मांधाता राजा का वंश आज भी यही निवास करता है ।
ओंकार ज्योतिर्लिंग की जलहरी (अरघा) में से नर्मदा का पानी पहाड़ के नीचे आ कर अदृश्य रूप में आगे बहता रहता हैं । ओमकारेश्वर की लिंग मूर्ति के आस-पास जलहरी के गहरे स्थान में होकर नर्मदा का पानी सदा बहता रहता है । जब इस पानी के पृष्ठ भाग पर बुलबुले निकलते हैं भगवान शिव शंकर प्रश्न हुए हैं ऐसी धारणा जानी जाती है ।
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