जानें श्री भीमशंकर मंदिर के पीछे की पौराणिक कथा और महत्व । श्री भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग की कथा हिंदी में । Shree Bhimashankar Jyotirlinga History and Story in Hindi

श्री भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग की कथा हिंदी में



सम्बद्धता हिंदू धर्म
देवताशिव (भीमाशंकर)
स्थापित अति प्राचीन
शैली नागरा शैली
अवस्थितिभीमाशंकर, निकट पुणे, महाराष्ट्र
Phone088887 73300
AddressPune, Maharashtra 410509





श्री भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग


भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने मात्र से मिट जाते हैं सभी दु:खों, यहां कुंभकरण के पुत्र भीमेश्वर का किया था वध Shree Bhimashankar Jyotirling Mandir: जानें कैसे हुई भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग की स्थापना, पढ़ें कथा Shree Bhimashankar Jyotirling Mandir: जानें कैसे हुई भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग की स्थापना, पढ़ें कथा भीमशंकर ज्योतिर्लिंग का इतिहास व कथा Bhimshankar Jyotirling History Story in Hindi Jyotirlinga: भीमाशंकर है भगवान शिव का प्रसिद्ध छठा ज्योतिर्लिंग, जानें महत्व और कथा


यह ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र प्रांत के पुणे जिले में राजगुरू नगर (खेड़ ) के तहसील से घोड़े गांव के आगे सह्याद्री पर्वत की भवरगिरी रथाचल और भीमाशंकर जी की पहाड़ियाँ है । उनमें से भीमाशंकर की पहाड़ी पर भीमाशंकर जी का पवित्र स्थान है । 


इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना की कथा शिपुराण में इस प्रकार दी गई  है::


प्राचीन काल में त्रिपुरासुर नाम का राक्षस बड़ा उन्मत्त हो गया था । 

        स्वर्ग, धरती और पाताल में उसने उधम मचा रखा था ।  सभी देवगण शंकर ने विशाल भीमकाय का शरीर धारण किया । उनका रुद्रअवतार देखकर त्रिपुरासुर भयभीत हो गया । दोनों में कई दिनों तक युद्ध चलता रहा । अंत में शंकर भगवान ने उस दुष्ट का वध किया और त्रिभुवन पर आए संकट को दूर किया । उस समय भीमकाय महादेव जी को बहुत थकान लगी । वे विश्राम हेतु सह्याद्रि के इस ऊंचे स्थान पर विराजमान हुए । उनके शरीर से पसीने की सहस्त्र धाराएं निकली और उन धाराओं का एक प्रवाह निकला  जो कुंड में जमा होकर भीम नदी का उद्गम हुआ । आज भी भीम उद्गम स्थान देखा जा सकता है । 

तब भक्तजनों ने उस भीमकाय रुद्र से प्रार्थना की - 

''संत - सज्जनों की रक्षा करने के लिए आप यहां स्थाई निवास कीजिए ।'' 

भोलेनाथ ने भक्तों की प्रार्थना स्वीकार की और ज्योतिर्लिंग के रूप पर सदा के लिए बस गए । 


भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने मात्र से मिट जाते हैं सभी दु:खों, यहां कुंभकरण के पुत्र भीमेश्वर का किया था वध Shree Bhimashankar Jyotirling Mandir: जानें कैसे हुई भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग की स्थापना, पढ़ें कथा Shree Bhimashankar Jyotirling Mandir: जानें कैसे हुई भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग की स्थापना, पढ़ें कथा भीमशंकर ज्योतिर्लिंग का इतिहास व कथा Bhimshankar Jyotirling History Story in Hindi Jyotirlinga: भीमाशंकर है भगवान शिव का प्रसिद्ध छठा ज्योतिर्लिंग, जानें महत्व और कथा


स्टोरी नो. २ 


कुंभकर्ण  और ककृटी  से उत्पन्न भीम नाम का एक बड़ा ही वीर राक्षस था । जो धर्मनाशक औरदुःखदायक चरित्र वाला था । बालकाल में उसने जब अपनी माता से अपने पिता का निवास आदि के संबंध में पूछा तो उसकी माता ने बताया कि -

             ''उसके पिता लंकापति रावण के भाई कुंभकरण थे । जो राम जी द्वारा युद्ध में मारे गए थे । मैंन अभी तक लंका नहीं देखी । तेरे पिता मुझे यही पर्वत पर मिले थे और उसके द्वारा मैं तुझे  जन्म देखकर यही रह गई । तेरे पिता के मारे जाने पर तो मायका ही मेरा एक मात्र सहारा रह गया । मेरे माता - पिता पुष्कसी और ककृट  जग अगस्त ऋषि को खाने गए तो उसने अपने तप से तीव्र प्रभाव से उन्हें भस्म कर दिया । ''मां से यह सब सुनकर वह राम जी सहित सभी देवताओं से बदला लेने को बदला लेने के लिए आतुर हो उठा । उसने कठोर तप का आश्रय लिया और ब्रह्मा जी को प्रसन कर  अपार बालशाली होना का वर प्राप्त कर लिया । इस बल से उसने इंद्र, विष्णु समेत सभी देवताओं को जीत कर अपने अधीन कर लिया । उसने उपरांत शिव जी के महान भक्त कामरूपश्वर का सर्वस्व हरण करके उसे बंदी बना लिया । कामरूपेश्वर बंदी गृह में भी विधिपूर्वक और नियमित रूप से शिवजी पूजन करता रहा और उनकी पत्नी भी शिव आराधना में तल्लीन रही । 


    इधर ब्रह्मा, विष्णु आदि देवताओं को साथ देकर भगवान शंकर की सेवा में उपस्थित होकर  उस दुष्ट दैत्य से परित्राण के लिए प्रार्थना करने गए । शिव  भगवान ने  आश्वासन देकर उन्हें विदा कर  किया । 



 


     तभी भीम को किसी ने कह दिया कि कामरूपेश्वर तो उसको मारने का अनुष्ठान कर रहा है । इस पर वह बंदीग्रह पहुंच कर उनकी पूजा आदि के संबंध में पूछने लगा । उनसे शिवजी की बजाय स्वयं भीम की पूजा करने को कहने लगा । कामरूपेश्वर के प्रतिरोध करने पर भी भीम की पूजा पार्थिव लिंग पर खडग से प्रहार किया  ।  उसका खड़ग वहां पर पहुंचा भी नहीं था कि शिव जी वहां प्रकट हो गए  । फिर धनुष, बाण, परिधि, त्रिशूल आदि में दोनों में भयंकर युद्ध हुआ  । अनततः वहां आए नारद जी के अनुरोध पर शिव जी ने फ़ेक मारकर उस दुष्ट को भस्म कर दिया ।  और इस प्रकार  देवों को कष्ट विमुक्त किया  । इसके पश्चात वहां उपस्थित देवताओं और मुनियों ने  शिव भगवान वहां पर निवास करने की प्राथना  जो कि भगवान ने सर्वकल्याण हेतु स्वीकर  कर भीमाशंकर नामक ज्योतिर्लिंग के रूप में उपस्थित हुए  । 




स्टोरी नो. 3


रनथाचल नाम की यह पहाड़ी रथाकार की है जहां स्वयंभू महादेव रहते हैं  । यहां कोई एक भतीराव नाम का लकड़हारा रहता था  । एक बार वहा लकड़ी काट रहा था   । उसने जैसे ही पेड़ की जड़ पर कुल्हाड़ी मारी धरती रक्त रंजित हो खून बहाने लगी  । भतीराव घबराकर भाग उठा  । जब लोग वहां आए तो  किसी ने वहां एक दूघारू गाय को लाकर खड़ा किया  । आश्चर्य की बात यह है कि उस स्थान पर शंकर भगवान का दिव्य ज्योतिर्लिंग प्रकट हुआ  । लोगों ने वहां मंदिर निर्माण करके उसमें ज्योतिर्लिंग की प्राण प्रतिष्ठा की  । इस मंदिर को भीमाशंकर के नाम से जाना जाता है  । 


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