श्री बैजनाथ ज्योतिर्लिंग की कथा हिंदी में
सम्बद्धता | हिंदू धर्म |
देवता | वैद्यनाथ |
शासी निकाय | बाबा बैद्यनाथ मन्दिर प्रबन्ध परिषद |
ज़िला | देवघर |
राज्य | झारखण्ड |
निर्माता | राजा पूरनमल |
Address | Shivganga Muhalla, Dardmara, Jharkhand 814112 |
श्री बैजनाथ ज्योतिर्लिंग
यह ज्योतिर्लिंग बिहार प्रांत के वैद्यनाथ नाथ धाम में स्थित है । इस जगह को देवघर जी बोलते हैं।
इसकी महिमा का वर्णन इस प्रकार है।
भगवान विष्णु ने देवगढ़ को यहां अमृत विजय प्राप्त कर दिया था। अतः इस तीर्थ स्थान को 'वैजयंती' नाम भी प्राप्त हुआ है।
देव दानवों द्वारा किए गए अमृत मंथन में चोदहा (14) रत्न निकले थे । उनमें धनवंतरी और अमृत रत्न भी थे ।अमृत को प्राप्त करने के लिए जब दानव दौड़ तब श्री विष्णु ने अमृत के धन्वंतरी को भी शंकर भगवान की लिंग मूर्ति में छिपा दिया था । दानवो ने जैसे ही लिंग मूर्ति को छूना चाह वैसे ही लिंग मूर्ति में ज्वाला निकली । दानव भाग गये थे । परुन्तु जब शिव भक्तो ने जब लिंग मूर्ति को छुआ तब उसमे से अमृत धाराएं निकली । आज भी इस ज्योतिर्लिंग को स्पर्श करके दर्शन करने की प्रथा है । जाति भेद, लिंक भेद, आदि किसी भी प्रकार का भेदभाव यहां नहीं होता है । यहां कोई भी आकर भगवान शिव का दर्शन पाकर पावन हो जाते है । लिंग मूर्ति में धन्वंतरी और अमृत रहने के कारण उसे अमृतेश्वर तथा धन्वंतरी ऐसा भी कहते हैं ।
स्टोरी नो. २
एक बार राक्षसाधीश रावण ने कैलाश पर्वत पर जाकर शिव जी को प्रसन्न करने के लिए घोर तप किया । सीत, ताप, वर्षा, अग्नि के कष्ट सहन करने पर भी शिव जी प्रसन्न नहीं हुए तो रावण ने अपने सिर काट - काट कर शिवलिंग पर चढ़ाने आरंभ कर दिया । नौ सिर चढ़ा चुकने के बाद जब दसवां सिर चढ़ाने को काटने लगा तो भगवान शिव प्रकट हो गए और उसके सिर को पूर्वव्त करके उससे वर मांगने को कहने लगे । इस पर रावण ने कहा कि मैं आपको अपनी लंका में ले जाना चाहता हूं । भक्तवत्सल शिव भगवान ने उद्धिग होने पर भी भक्तों की इच्छा को स्वीकार कर लिया । उन्होंने कहा कि तुम मेरे लिंग को भक्ति पूर्वक अपने घर ले जाओ पर ध्यान रखना कि यदि तुम कहीं बीच में धरती पर इस लिंग को रख दोगे तो वही स्थिर हो जाएगा ।
रावण शिवलिंग को लेकर अपने घर को चला तो मार्ग में उसे लघुशंका लगी । उसने एक गोप को लिंग थमाया और स्वयं लघुशंका करने के लिए चल दिया । गोप लिंग के भार को संभाल न सका और उसने उसे धरती पर रख दिया । बस शिव भगवान यहीं स्थित हो गए उनका नाम वैद्यनाथेश्वर पड़ा ।
दुष्टतमा रावण के पास शिवजी के निवास के समाचार से देवताओं को दुःख हुआ । उनके अनुरोध में नारद जी रावण के पास जाकर उसके तप की प्रशंसा करते हुए बोले -
''तुमने शिवजी पर विश्वास करके भारी भूल की । शिव जी के वचन से सत्य मानना ही बुद्धिमता नहीं है । आब तुम जाकर कैलाश को उखाड़ डालो और उनसे अपना रूठना उन पर प्राकट करो । तुम्हारी सफलता ही तुम्हारी लक्ष्य - सिद्धि की सूचक होगी ।''
नारद जी की बातों में आकर रावण ने वैसा ही किया जिससे क्रोधित हो से भगवान ने रावण को श्राप दे दिया - ''रावण ! तेरी भुजाओं का दमन करने वाली शक्ति शीघ्र ही अविभूत होगी । नारद जी ने अपनी सफलता की सूचना देकर देवों को निश्चिनत किया ।
इधर रावण प्रसन्न होकर घर आया और शिव जी की माया से विमोहित उस दुष्ट ने सारे जगत को अपने अधीन करने का निश्चय कर लिया । उसके दंभ के विनाश के लिए परमात्मा श्री राम को रामावतार धारण करना पड़ा ।
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