श्री केदारनाथ ज्योतिर्लिंग की कथा हिंदी में
सम्बद्धता | हिंदू धर्म |
देवता | शिव (वृषभनाथ) |
अवस्थिति | केदारनाथ, उत्तराखण्ड |
शैली | कत्यूरी शैली |
निर्माता | पाण्डव वंश के जनमेजय आदि पुरुष |
Address | Kedarnath, Uttarakhand 246445 |
Phone | 01389 222 083 |
श्री केदारनाथ ज्योतिर्लिंग
भगवान शिव शंकर के 11 वे फ्र ज्योतिर्लिंग हिमाच्छादित उत्तरान्चल प्रदेश के श्री केदारनाथ धाम के दिव्य तीर्थ में विधमान है।
हिमाचल की देवभूमि में बसे इस तीर्थ स्थान के दर्शन केवल 6 महीने ही होते हैं। वैशाख से लेकर आश्विन तक की कालावधि ॐ में इस तीर्थ की यात्रा लोग कर सकते हैं। वर्ष 5 के अन्य महीनों में कड़ी सर्दी पड़ने से हिमाचल पर्वत का यह प्रदेश हिमाच्छादित रहने के कारण श्री केदारनाथ मन्दिर के पट दर्शनार्थियों के लिये बंद कर दिये जाते हैं।
ज्योतिर्लिंग का इस तरह का जो आकार बना है उसकी अनोखी कथा इस प्रकार है।
कौरव-पांडवों के युद्ध में अपने ही लोगों की अपनों द्वारा ही हत्या हुई। पापलाक्षन करने के लिए पांडव ॐ तीर्थ स्थान काशी पहुँचे परन्तु भगवान विश्वेशवर जी उस समय हिमालय के कैलाश पर गए हुए हैं।, यह 5 सूचना उन्हें वहाँ मिली। इसे सुन पांडव काशी से निकलकर हरद्वार होकर हिमालय की गोद में पहुँचे। दूर से ॐ ही उन्हें भगवान शंकरजी के दर्शन हुए। परन्तु पांडवों को देखकर भगवान शिव शंकार वहाँ से लुप्त हो गए। ॐ यह देखकर धर्मराज बोले-“हे देव, हम पापियों को देखकर शंकर भगवान लुप्त हुए हैं। प्रभु हम आपको ढूँढ निकालेंगे। आपके दर्शनों से हम पाप विमुक्त होंगे। हमें देख जहाँ आप लुप्त हुए हैं वह स्थान अब 'गुप्त काशी' के रूप में पवित्र तीर्थ बनेगा।" फिर पांडव गुप्त काशी (रूद्र प्रयाग) से आगे निकलकर हिमालय 45 के कैलाश, गौरी कुंड के प्रदेश में घूमते रहे और भगवान शिव शंकर को ढूँढते रहे। इतने में नकुल-सहदेव ॐ को एक भैंसा दिखाई दिया। उसका अनोखा रूप देखकर धर्मराज ने कहा, "भगवान शंकर ने ही यह भैंसे का रूप धारण किया हुआ है, वे हमारी परीक्षा ले रहे हैं।
फिर क्या था! गदाधारी भीम उस भैंसे के पीछे ए। भैंसा उछल पड़ा, भीम के हाथ नहीं लगा। अन्ततः भीम थक गये। फिर भी भीम ने गदा प्रहार से भैंस को घायल कर दिया। घायल भैंसा धरती में मुंह दबाकर बैठ गया। भीम ने उसकी पूँछ पकड़कर खींचा। भैंसे को मुँह इस खिंचातानी से सीधे नेपाल में जा पहुँचा। भैंसे का पार्श्व भाग केदारधाम में ही रहा नेपाल में वह पशुपति नाथ के नाम से जाना जाने लगा।
महेश के उस पार्श्व भाग से एक दिव्य ज्योति प्रकट हुई। दिव्य ज्योति में से शंकर भगवान प्रकट हुए। ॐ पांडवों को उन्होंने दर्शन दिए। शंकार भगवान के दर्शन से पांडवों का पापहरण हुआ। शंकर भगवान ने क पांडवों से कहा, "मैं अब यहाँ इसी त्रिकोणाकार में ज्योतिर्लिंग के रूप में सदैव रहूँगा। केदारनाथ के दर्शन से मेरे भक्तगण पावन होंगे। "
केदारधाम में पांडवों की कई स्मृतियाँ जागत रही हैं। राजा पांडू इस वन में माद्री के साथ विहार करते समय मर गये थे। वह स्थान पांडुकेश्वर के नाम से प्रसिद्ध है। वहाँ आदिवासी लोग पांडव नृत्य प्रस्तुत करते रहते हैं। जिस स्थान से पांडव स्वर्ग सिधारे उस ऊँची चोटी को 'स्वर्ग रोणिही" कहते हैं। धर्मराज जब स्वर्ग 5 सिधार रहे थे तब उनका एक अनूठा शरीर से अलग हो धरती पर गिर गया था। इस स्थान पर धर्मराज ने 5 ॐ अंगुष्ठमात्र शिवलिंग की स्थापना की।
महेश रूप लिए हुए शंकरजी पर भीम ने गदा से प्रहार किया था। अतः भीम को बहुत पछतावा हुआ, 5 ॐ बुरा लगा। वह महेश का शरीर घी से मलने लगे। उस स्मृति के रूप में आज भी उस त्रिकोणाकार दिव्य ज्योतिर्लिंग केदारनाथ की घी से मालिश करते हैं। इसी विधि से भगवान शंकरजी की पूजार्चना की जाती है। पानी और बेल पत्तों से यहाँ अभिषेक नहीं किया जाता, फूल भी नहीं चढ़ते।
नर-नारायण जब बद्रिका ग्राम में जा कर पार्थिव पूजा करने लगे जिसके फलस्वरूप पार्थिव शिवजी वहाँ प्रकट हो गए। फिर एक दिन शिवजी ने प्रसन्न होकर वर माँगने को कहा तो नर नारायण ने लोक ॐ कल्याण हेतु उनसे स्वयं अपने स्वरूप को पूजा के निमित्त इस स्थान पर सर्वदा स्थित रहने की प्रार्थना की। ॐ 5 नर-नारायण दोनों की इस प्रार्थना पर हिमाच्छादित केदार नामक स्थान पर साक्षात महेश्वर ज्योति स्वरूप हो स्वयं स्थित हुए और वहाँ उनका केदारेश्वर नाम पड़ा।
केदारेश्वर के दर्शन से स्वप्न में भी दुःख प्राप्त नहीं होता है। केदारेश्वर शंकरजी का पूजन कर पांडवों का सब दुःख जाता रहा। बद्रीकेश्वर का दर्शन पूजन आवागमन से मुक्ति दिलाता है। केदारेश्वर में दान करने वाले शिवजी के समीप जाने पर उनके रूप हो जाते हैं।
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