श्री त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा हिंदी में
सम्बद्धता | हिंदू धर्म |
देवता | शिव (त्र्यम्बकेश्वर) |
अवस्थिति | त्रयंबक, नासिक, महाराष्ट्र |
समय | 05:30 AM- 09:00 PM |
Phone | 91-2594-233215 |
Address | Shrimant Path, Trimbak Maharashtra 422212 |
श्री त्रंबकेश्वर जी
यह ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र प्रान्त में नाशिक के समीप 32 कि.मी. पश्चिम में स्थित है।
इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना और कथा इस प्रकार शिवपुराण में दी गई है।
अहिल्या के पति महर्षि गौतम दक्षिण ब्रह्म पर्वत पर तप करते थे। वहाँ एक समय 100 वर्षों तक वर्षा न होने से पृथ्वी के पालने की क्षमता अतिक्षीण हो गई। जीवों के प्राणों का आसरा जल के आभाव में वहाँ के निवासी तथा पशु-पक्षी आदि उस स्थान को छोड़कर जाने लगे। ऐसी घोर अनावृष्टि के कारण गौतमजी ने छः मास तक प्राणायाम द्वारा मांगलिक तप किया जिससे प्रसन्न होकर देव वरूण ने उन्हें उनका मनोवांछित जल का वरदान दिया। वरूण देव के कहने पर ऋषि गौतम ने अपने हाथ से गहरा गड्ढा खोदा जिसमें वरूणजी की दिव्य शक्ति से जल भर गया। देव वरूण कहा- "तुम्हारे पुण्रू प्रताप से यह गड्ढा अक्षय जल वाला तीर्थ होगा, तुम्हारे ही नाम से प्रसिद्ध होगा और यज्ञ, तप, हवन, दान श्राद्ध और देव पूजा करने वालों को विपुल फल देने वाला होगा।" उस जल को पाकर वहाँ के ऋषियों ने यज्ञ के लिए वांछित ब्रीहि का उत्पादन आरंभ किया।
एक बार गौतम के शिष्य उस गड्ढे से जल लेने गए तो उसी समय वहीं अन्य ऋषियों की पत्नियां भी जल लेने आ पहुँची और पहले जल लेने का हठ करने लगीं। गौतम के शिष्य गौतम की पत्नी को बुला लाए और उसने हस्तक्षेप करके शिष्यों को ही पहले जल लेने की व्यवस्था की। ऋषि पत्नियों ने इसे अपना अपमान समझा और नमक-मिर्च लगाकर अपने पतियों को भड़काया। उन ऋषियों ने गौतम से इस अपमान का प्रतिशोध लेने के लिए गणेशजी का तप किया। गणेशजी ने प्रकट होकर वर मांगने को कहा। इस पर ऋषियों ने गौतम के अनिष्ट की कामना करते हुए उसे वहाँ से अपमानित करके निकालने की शक्ति देने का ॐ फ्र वर मांगा। गणेशजी ने परोपकारी महात्मा गन्होंने जल लाकर उन ऋषियों का कष्ट दूर किया था के ॐ प्रति दूर्भावना न रखने की ही अनुरोध विऋषियों के हठ पकड़ने पर गणेशजी ने उनकी प्रार्थना 4 स्वीकार कर ली और साथ ही उन्हें परोपकारी महात्मा गौतम को कष्ट देने के दुष्परिणाम भुगतने के लिए ॐ प्रस्तुत रहने की चेतावनी भी दी।
एक दिन गौतम जब ब्रीहि लेने गए तो एक दुबली पतली गाय खड़ी थी। गौतमजी ने लौ की लकड़ी ज्योंही गाय हटाने के लिए मारी त्योंही गाय वहाँ गिरकर ढेर हो गई। बस फिर क्या था ऋषियों ने गौ हत्या का पाप गौतम के माथे पर मढकर उन्हें बहुत अपमानित किया और उस स्थान को दुःख ताप से बचाने के लिए गौतम को वहाँ से चले जाने को कहा। गौतमजी बहुत दुःखी हुए और आत्मग्लानि से वह स्थान छोड़कर चले गए।
गौतमजी ने गौ हत्या के पाप से निवृत्ति के लिए ऋषियों द्वारा बताए गए उपाय अपने तप से गंगाजी को लाकर स्नान करना और कोटि संख्या में पार्थिव लिंगों को बनाकर शिवजी की पूजा करना अपनाया। शिवजी ने प्रसन्न होकर उन्हें बताया कि वह तो शुद्ध अंतःकरण वाले महात्मा हैं। उसने कोई पाप नहीं किया है। उसके साथ अन्याय हुआ है अन्यथा वह निष्कलंक है। शिवजी ने गौतम ऋषि से वर मांगने का कहा तो गौतम ने शिवजी से उसे गंगा देकर संसार का उपकार करने का वर मांगा। शिवजी ने गंगाजी का तत्व रूप अविशिष्ट जल मुनि से प्रदान किया। गौतम ने प्राप्त गंगाजी से अपने को गौ हत्या के पाप से मुक्त करने की प्रार्थना की। गंगाजी ने गौतम को पावन बनाने के उपरांत स्वर्ग लौट जाने का मन बनाया। इस पर शिवजी ने उन्हें कलियुग पर्यन्त धरती पर ही रहने का आदेश दिया। तो गंगाजी ने उनसे प्रार्थना की फिर आप भी पार्वतीजी सहित पृथ्वी पर निवास करें। संसार अर्थ शिवजी ने यह स्वीकार कर लिया।
गंगाजी ने भगवान शिव से पूछा कि उसे महत्त्व का संसार को कैसे पता चलेगा? तब उत्तर में ऋषियों ने कहा कि जब तक बृहस्पति सिंह राशि पर स्थित रहेंगे तब तक हम सभी यहाँ गंगा तट पर निवास करेंगे और नित्य तीनों समय गंगा स्नान कर शिवजी के दर्शन करते रहेंगे। इससे हम दोष विमुक्त बने रहेंगे। यह सुनकर गंगाजी और शिवजी वहाँ स्थित हुए। गंगाजी गौतमी नाम से लिंग त्र्यम्बक नास से विख्यात हुआ।
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