श्री नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा हिंदी में
सम्बद्धता | हिंदू धर्म |
देवता | शिव (नागेश्वर ) |
स्थापना | सतयुग |
ज़िला | द्वारका |
Phone | +91- 2892, Office : 234080 Res: 234090 |
Address | Daarukavanam, Gujarat 361345 |
श्री नागनाथ जी
यह ज्योर्तिलिंग गुजरात प्रांत में द्वारकापुरी के समीप स्थित है । इस ज्योर्तिलिंग की कथा पुराण में इस प्रकार दी गई हैं ।
दक्ष प्रजापति ने महायज्ञ करते समय भगवान शिव को निमंत्रण नहीं दिया था । माता सती यह अपमान सह ना सकी और अपने यज्ञ कुंड में कूदकर अपने शरीर की आहूती दे दी । इस समाचार से भगवान से शिव शंकर अत्यंत दुखी हुए । वह जहाँ - जहाँ घूमते रहेता थे । घूमते घूमते वे अमद्क नाम की एक विशाल झील के पट पर आकर रहने लगे ।
इस स्थान पर भी उनके संबंध में कुछ अप्रिय घटनाएं घटी । परिणाम यह हुआ कि विरक्त शंकर भगवान ने अपना शरीर भस्म कर डाला । कुछ समय बाद वनवासी पांडवों ने उस अमद्क के झील के परिसर में अपना आश्रम बनाया । उनकी गाये पानी पीने के लिए झील पर न भीम ने यह चमत्कार देखा । उन्होंने धर्मराज को यह बात बताई । तब धर्मराज ने कहा ''इस झील में कोई डिआती थी । पानी पीने के उपरांत गाये अपने स्तन से दूध धाराऐ बहाकर झील में अर्पित करती थी । एक दिव्य देवता निवास कर रहा है'' । फिर पांडवों ने झील का पानी हटाना शुरू किया । झील के मध्य में पानी इतना उसण था कि वह उबल रहा था । तब भीम हाथ में गदा लेकर झील के पानी पर तीन बार प्रहार किया । पानी झट से हट गया उस । उसी समय भीतर पानी की जगह खून की धाराऐ निकलने लगी । भगवान शंकर का दिव्या ज्योर्तिलिंग झील की तलहटी पर दिखइ दिया ।
पश्चिमी समुद्र तट पर सोहल योजन विस्तार वाले एक वन में दारुक और दारुका रहते थे । दारुक की उत्पात से दुःखी ऋषि तथा अन्य लोग ओवृ मुनि की शरण में आ गए जिन्होंने दैत्य को नष्ट हो जाने का श्राप दे दिया । देवताओ ने उन पर आक्रमण किया तो राक्षस चिंतित हो उठे । पार्वती द्वारा प्राप्त शक्ति बल पर दारुका उस वन को आकाश मार्ग से उड़ाकर समुद्र के बीच ले आया और सभी राक्षस निश्चिंत होकर वह रहने लगे । वे नौका द्वारा समुद्र में से जाकरऋषि - मुनियों को पकड़कर बंदी बनाने लगे । एक बार उन दुष्टों द्वारा बंदी बनाए गये लोगों में एक शिव भक्त सुप्रिया नामक वैश्य भी था । वह बिना शिव पूजन कीए अन्न आदि ग्रहण नहीं करता था । उसने बंदीगृह में भी शिवजी की आराधना , शिव - कीर्तन प्रारम्भ कर दिया । बंदीगृह के पहरेदारो ने जब अपने स्वामी को सूचना दी तो उसने अपने सेवकों को उस वैश्य की हत्या करने का आदेश दे दिया । इस पर सुप्रिय ने भगवान शंकर से प्रार्थना की । भगवान शंकर ने प्रकट होकर क्षण मात्र में ही राक्षसों का सहार कर दिया । इधर दारुका को पार्वतीजी का वर प्राप्त था । इसके फलस्वरूप देवी ने उस युग के अंत में राक्षसी सृष्टि होने और द्वारिका के शासिका होने की बात कही, जिसे शिव जी ने स्वीकार कर लिया । फिर वहाँ शिवजी और पार्वती जी वहीँ रुक गई और उनके ज्योर्तिलिंग का नाम नागेश्वर पड़ा तथा पार्वती जी नागेश्वरी कहलाई ।
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